आओ,लुट सको तो लुट लो,सफेदपोश गजनियों,छत्तीसगढ़ में जमीनों की लूट मची है ?

आओ,लुट सको तो लुट लो,सफेदपोश गजनियों,छत्तीसगढ़ में जमीनों की लूट मची है ?

एक व्यक्ति राजेश सेठ बाहर से बिलासपुर में रहने आता है,तारवहार बिलासपुर स्थित मौके की मैनरोड पर करोड़ो रु की शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा करता है, उक्त भूमि पर एक छोटी सी झोपडी दर्शाकर,नगर निगम बिलासपुर में पिछले 4/5 वर्षों का न्यूनतम टैक्स (संपति कर) भरता है, टैक्स का यह दस्तावेज पर्याप्त है यह दर्शाने के लिए कि वह उस जमीन पर पिछले 4/5 वर्षों से काबिज है फिर पटवारी से सांठ गांठ कर, उक्त नगर निगम के टैक्स की रशीद दिखाकर पिछले 4/5 सालों से काबिज हूं बताकर,पटवारी से  कब्जा प्रमाण पत्र बनवाता है ! ये सब काम, दस्तावेजी सबूत बाहर से आया व्यक्ति राजेश सेठ अपनी पत्नी के नाम पर तैयार करता है फिर राजेश सेठ की पत्नी राजेश सेठ के नाम पर रजिस्ट्री कर देती है ! चूंकि, रजिस्ट्री खर्च अधिक आ रहा था तो राजेश सेठ ने शासकीय जमीन पर अवैध कब्जा तो किया 2740 वर्गफिट जमीन पर, लेकिन,राजेश सेठ की पत्नी ने अपने पति राजेश सेठ के नाम पर  उक्त शासकीय भूमि की रजिस्ट्री कराई मात्र 1700 वर्गफिट की, शेष 1040 वर्गफिट का आज भी राजेश सेठ के पास कोई दस्तावेज नहीं है,  न हींग लगी न फिटकरी, न सरकार से कोई पट्टा मिला, न जमीन की किसी को कोई कीमत देनी पड़ी और रातों रात बन गए करोड़ो की जमीन के मालिक, फिर इसी जमीन पर बहुमंजिला बिल्डिंग बनाने किए बैंक वाले करोड़ो रु फाइनेंस भी कर दिए ! इस पूर्व से फाइनेंस अर्थात बैंक में गिरवी रखी जमीन ओर निर्माण को पुनः कई लोगों को बेचकर कई करोड़ का मालिक बन गया राजेश सेठ, है न ?छत्तीसगढ़ में जमीनों की लूट ?

अब खुद सरकार ने जमीनों की लूट का रास्ता खोल दिया ?

दूसरे परिदृश्य में सरकार के कदम को इस रूप में भी देखना न्यायोचित होगा कि तहसीलदारों ने,पटवारियों ने अति कर रखी थी,उस अति के अंत के रूप में सरकार का यह फैसला देखा जा रहा है कि, राजस्व अधिकारियों का काम वित विभाग को सौंप दिया है, यानि ऐन केन किसी प्रकार से रजिस्ट्री हो जाए तो राजस्व रिकॉर्ड में आपके नाम पर नामांतरण भी वित विभाग कर देगा ?

रेवेन्यू विभाग का काम पूरी तरह से धीरे-धीरे वित्त विभाग की तरफ जाते जा रहा है, जैसे की रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की व्यवस्था और रजिस्ट्री के संबंध में कार्रवाई करने की व्यवस्था केवल रेवेन्यू विभाग के पास थी, परंतु इसे छत्तीसगढ़ में रेवेन्यू विभाग से छीन करके वित्त विभाग के पास दे दिया, अब रजिस्ट्री का नामांतरण रेवेन्यू की जगह वित्त विभाग में पंजीयन अधिकारी करेंगे और रजिस्ट्री को निरस्त करने का काम महानिरीक्षक पंजीयन करेंगे, इस प्रकार से धीरे-धीरे करके सभी विभागों का वित्त विभाग में केंद्रीकरण किया जा रहा है। जिससे कि अन्य विभाग काफी कमजोर हो जाएंगे और आगे चलकर अनियमितता बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी, क्योंकि जमीन के पूरे दस्तावेज रेवेन्यू विभाग के पास है, वित्त विभाग के पास ना तो कोई साधन है और ना ही कोई ऐसी व्यवस्था है कि वह यह पता कर सके कि जो पंजीयन हो रहा है वह सही है कि गलत है। शासकीय भूमियों की रजिस्ट्री हो रही है कि नहीं हो रही है इस संबंध में पूरे सिस्टम में कहीं भी ना तो देखने की व्यवस्था है और ना ही जानने की व्यवस्था है । पटवारी भी ऑनलाइन यह नहीं देख पा रहा है कि इन भूमियों की रजिस्ट्री हो रही है। आम आदमी यह नहीं जान सकता कि किस भूमि की रजिस्ट्री हो रही है या किस भूमि का नामांतरण हो रहा है और ना ही उसमें कोई आपत्ति कर सकता है। आगे चलकर छत्तीसगढ़ के स्थिति बहुत ज्यादा ही खराब हो जाएगी !

तहसीलदारों,पटवारियों की अति का अंत ?जिससे सरकार किसी की भी हो ?, राजस्व विभाग के अधिकांश भ्रष्ट अधिकारियों,पटवारियों की वजह से जनता के बीच सरकारें बदनाम हुआ करती थी ?सरकार ने भ्रष्टाचारी चूहे भगाने की बजाय पूरा घर ही जला दिया ! अर्थात भ्रष्टाचारियों की पूरी व्यवस्था की ही what लगा दी ? सरकार के फैसले जनहित में होने के साथ साथ भूमाफियाओं सहित शासकीय जमीनों के लुटेरों के वरदान साबित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता,विशेषकर राजेश सेठ जैसे लोगों के लिए, विभिन्न मद की शासकीय भूमि कैसे किसी की निजी स्वामित्व की भूमि हो सकती है ? जबकि तारबहार निवासी राजेश सेठ तो गौठान मद की शासकीय भूमि का स्वामी बन बैठा है !

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