गडकरी के जुर्माने ने राज्यों को किया मालामाल,जनता पर हुआ आर्थिक प्रहार ?

केंद्रीय परिवहन मंत्री ने गडकरी ने जब ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने की राशि में भारी भरकम वृद्धि का बोझ जनता पर लादा था तो दलील दी गई थी कि इससे दुर्घटनाओं में कमी आएगी,लेकिन,मामल गुप्त था,कुछ ओर था, दुघटनाओं में कमी होने का सीधा सीधा आर्थिक लाभ बीमा कंपनियों को होना था तो यह भी दलील दी गई थी यदि दुर्घटनाएं कम होगी तो बीमा कंपनियों की क्लेम लागत कम होगी, क्लेम भुगतान राशि कम होगी तो बीमा प्रीमियम कम होंगे लेकिन हकीकत में सब दावे और फार्मूले फैल हुए ! गडकरी को बीमा कंपनियों की चिंता तो थी लेकिन भारी भरकम जुर्माना राशि से आम मध्यम वर्ग के बेहाल है उसकी चिंता कभी नहीं की गई ! 40% से अधिक लोग तो 25/30 में पुरानी बाइक खरीदते है, सायकिल पर चलने वाले मध्यम वर्ग के लोग बाइक के सपना पूरा करते है, यदि किसी को गडकरी के भारी भरकम जुर्माने का 8/10 हजार का चालान हो जाए तो ऐसा मध्यम वर्ग फिर से साइकिल पर चलने को मजबूर होगा गडकरी ने यह चिंता कभी नहीं किया ?सत्ता, जनता पर क्रूरता के लिए नहीं होती राहत प्रदान करने के लिए होती है ! रही ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की बात तो किस से नहीं होता, खुद गडकरी भी ट्रैफिक उल्लंघन कर चुके हैं चूंकि ये भरे पेट वाले है तो इनको फर्क नहीं पड़ा ! काश, सायकिल से बाइक वाले बनते तो समझ आता कि हजार, दो हजार का चालान भी कैसे मध्यम वर्ग पर भारी पड़ता है ! दुर्घटना पर सरकारी धन का दुरुपयोग कर बीमा कंपनियों को बचाने की कवायद मात्र है कि दुर्घटना पर डेढ़ लाख का मुक्त इलाज ओर दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को तुरंत हॉस्पिटल पहुचानें पर कथित इनाम की राशि ?ये फौरी तौर पर दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति के लिए राहत हो सकती है लेकिन इसे ही मुआवजा समझकर लोग अधिकांश लोग बीमा कंपनियों को क्लेम नहीं करेंगे ! कुल मिलाकर भारी भरकम जुर्माना राशि ने राज्यों को आर्थिक मालामाल किया है जनता का कोई हित नहीं,जनता को कोई फायदा नहीं ! दुर्घटनाओं में कमी का भी यदि कोई आर्थिक लाभ होगा तो भविष्य में बीमा कंपनियों को ही होगा !जनता को कोई लाभ नहीं !