सावधान मोदी,सावधान भाजपा,सावधान देश ! अराजकता, सत्ता पलट की कोशिशों लिप्त है विपक्ष ?

सावधान मोदी,सावधान भाजपा,सावधान देश ! अराजकता, सत्ता पलट की कोशिशों लिप्त है विपक्ष ?

चौंक गए न? वैश्विक मामलों के जानकार इन दिनों खासे परेशान चल रहे हैं। वजह है मोदी को हटाने के कथित अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र की दिनोंदिन फैलती चर्चा। कोलाहल बहुत है, लेकिन सरकार, भाजपा, मुख्यधारा का मीडिया और तमाम एजेंसियां एकदम चुप हैं। पिन ड्रॉप साइलेंस।

आज के इस संपादकीय आर्टिकल्स में कुछ हटकर है। इसका नाम है ऑपरेशन-D3 यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके पद से हटाने की डीप स्टेट, सीआईए और ट्रंप प्रशासन की कथित योजना। कहना कठिन है कि अंतरराष्ट्रीय राजनयिक और राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के लिए विख्यात कुछ मीडिया मंचों पर पिछले लगभग दो हफ्ते से जो इस बारे में जो थ्योरीज और समाचार प्रसारित किए जा रहे हैं, उनमें कितनी सच्चाई है।

पहले चर्चा करते हैं कि ‘ऑपरेशन D-3’ या फिर ‘ऑपरेशन-37’ है क्या और इसकी चर्चा अचानक क्यों तेज हो गई है?

चर्चा कहां से शुरू हुई ?
इस कहानी का एक सिरा शुरू होता है गोवा के एक राष्ट्रवादी पत्रकार सावियो रोड्रिग्स से। ‘गोवा-क्रॉनिकल’ नामक मीडिया समूह के संस्थापक संपादक और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राजनय के मूर्धन्य जानकार। वह पिछले करीब डेढ़ हफ्ते से खुलेआम दावा कर रहे हैं कि ग्लोबल डीप स्टेट, ट्रंप प्रशासन और CIA मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए पिछले कई महीनों से एक अत्यन्त गोपनीय अभियान चला रहे हैं जिसे ‘ऑपरेशन-डिसेप्शन डायवर्सन एंड डिवीजन’ यानी ‘ऑपरेशन D-3’ नाम दिया गया है।

क्या है डीप स्टेट?
लेकिन इस कहानी की गहराई से पड़ताल करने के पहले जान लेते हैं कि डीप स्टेट आखिर है क्या? दुनिया भर के खुफिया, कूटनीतिक एवं सुरक्षा जानकारों की जो समझ बनी है, उसके मुताबिक डीप स्टेट पश्चिमी देशों के पुराने रजवाड़ों, दैत्याकार कॉरपोरेट्स और धार्मिक नेताओं के एक अत्यंत गोपनीय, अदृश्य और बहुत सारे संगठित समूह को कहा जाता है।

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पश्चिम की तमाम सरकारें, खुफिया एजेंसियां, सेनाएं, वैश्विक कंपनियां, थिंक टैंक, मीडिया, राजनैतिक दल, स्वयंसेवी संगठन और विराट अकादमिक संस्थाएं, इस अदृश्य सत्ता के ज़र-खरीद गुलाम हैं। दुनिया की सारी लड़ाईयां, सारे विवाद, सारे धंधे, सारे हथियार, सारे माफिया और सेनाएं एवं सारी विचारधाराएं इनके इशारों पर ही नाचती हैं। संक्षेप ,में कहें तो ब्रिटिश राज परिवार और वेटिकन इस समूह के अदृश्य नियंता हैं और दुनियाभर में कई ट्रिलियन डॉलर की सम्पदा के मालिक रॉथ्सचील्ड, रॉकफेलर, गोल्डमैन सेक्स परिवार के अलावा वैनगार्ड, ब्लैकस्टोन, और ब्लैकरॉक जैसी निवेश फर्में इस समूह के खजांची हैं।

इनके नीचे 300 शक्तिशाली नेताओं, वैश्विक निगमों के मालिकों, ख़ुफ़िया प्रमुखों, और विशिष्ट रणनीतिकारों का समूह है जिसे ‘कमिटी ऑफ़ थ्री हंड्रेड’ कहा जाता है। इन दोनों समूहों को परामर्श देने के लिए दुनियाभर के थिंक टैंक्स ले चुनिंदा विद्वानों और रनणनीतिकारों का एक समूह होता है जिसे ‘क्लब ऑफ़ रोम’ कहा जाता है।

ऑपरेशन-37, क्या है सच्चाई?

बहरहाल, आते हैं आज की थ्योरी पर जिसमें सावियो देश के कई जाने माने यूट्यूब चैनल्स को कई दिनों से बता रहे हैं कि किस तरह सीआईए मोदी को हटाने के लिए इस ऑपरेशन को दो अलग-अलग हिस्सों में बांटकर चला रही है। इसका पहला हिस्सा है ‘CP यानी Change of Person in Power’. यानी सरकार एनडीए की ही रहे लेकिन उसके मुखिया मोदी न रहें।

अमेरिकी प्रशासन का सबसे ज्यादा ज़ोर इसी योजना पर क्योंकि वो यह भी नहीं चाहते कि कोई चीन समर्थक धुर वामपंथी भारत की सत्ता में आए। सात सूत्रीय इस योजना के तहत सत्तारूढ़ NDA में खासतौर से भाजपा में ऐसे लोगों को तलाशना था जो मोदी और अमित शाह से किसी भी वजह से नाखुश बताए जाते हैं।

कैसे भारत ने की CIA में घुसपैठ ?
सावियो बताते हैं कि CIA के एजेंट्स ने NDA के ऐसे 37 सांसदों को चिन्हित करके उनपर डोरे डालना शुरू भी कर दिया था, लेकिन ऐन मौके पर भारत की खुफिया एजेंसी R&AW ने सीआईए में मौजूद अपने एसेट्स के जरिए इस पूरे प्लान का ब्लूप्रिंट हासिल कर लिया। यह पश्चिम को शायद अब समझ में आ रहा होगा कि नया भारत किस तरह शिकारियों के जबड़े फाड़कर शिकार को निकलना जानता है और दुश्मनों को घर में घुसकर मारना भी जानता है।

अमेरिका के थिंक टैंक, कॉरपोरेट्स, मीडिया और अकादमिक जगत में चीन ने अपनी आर्थिक ताकत के बूते व्यापक घुसपैठ कर ली है। उद्योगपति नेविल रॉय सिंघम की चीन से सांठगांठ को लेकर हुआ खुलासा तो इस घुसपैठ की एक छोटी सी बानगी भर है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इसी सिंघम ने भारत में न्यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ को भी कथित रूप से भारत विरोधी प्रोपेगंडा फैलाने के लिए 38 करोड़ रुपए की फंडिंग की थी।

मोदी ने कैसे किया इस योजना का सफाया?
अमेरिकी योजना के ब्लूप्रिंट को हासिल करने के बाद शुरू हुआ मोदी सरकार का नागयज्ञ सरीखा सफाया अभियान। इशारों इशारों में कहें तो आप यूं समझ लीजिए कि हाल के दिनों में एक संवैधानिक पद का रिक्त होना और अम्बानी के खिलाफ धड़ाधड एक्शन कहीं न कहीं इस ऑपरेशन-37 से जुड़े हैं।

इस बार सहायक सिद्ध हुए चंद्रबाबू नायडू
वैसे सबसे पहले इसकी आहट को महसूस किया था आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने, और उन्होंने ही पीएम मोदी को इस मामले में तुरंत सावधान भी किया था। जानकार बताते हैं कि दरअसल, विपक्ष के कुछ नेताओं और एक संवैधानिक हस्ती ने एक उद्योगपति को नायडू के पास भेजकर मोदी सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की थी। पाठकों को बता दें कि मोदी के तीसरी बार शपथ लेने के बाद प्रोटेस्टेंट चर्च के कई शीर्ष धर्म गुरुओं ने नायडू पर डोरे डालने की नाकामयाब कोशिश की थी।

नायडू इसबार किसी के झांसे में नहीं आए और उन्होंने मोदी को अलर्ट कर दिया। इसके बाद से गंगा में बहुत पानी बह चुका है। भारत-रूस-चीन की बढ़ती पींगों और घरेलू मोर्चे पर टैरिफ टेरर के उल्टे पड़ते दांव से घबराए ट्रंप के सुर बदल रहे हैं और हो सकता है एकाध महीने में ट्रंप 360 डिग्री का यू टर्न ले लें।

सावियो का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सही समय पर इस अभियान की पूरी जानकारी मिल चुकी है इसलिए फिलहाल CIA ने मोदी को हटाने के इस अभियान के एक हिस्से को पैसिव मोड में डाल दिया है।

इससे पहले कि हम इस योजना के दूसरे हिस्से में जाएं आप यह जरूर जानना चाहेंगे कि पीएम मोदी से दोस्ती की कसमें खाने वाले ट्रंप रातोरांत उनके इतने विरोधी कैसे हो गए। जानकार इसके बहुत से कारण बताते हैं।

आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर भारत की विध्वंसक बमबारी की गई, दुनिया भर के रक्षा विशेषज्ञ अब यह मानकर चल रहे हैं कि दरअसल रावलपिंडी के पास चकलाला स्थित नूरखान एयरबेस में अमेरिका ने कथित रूप से एक अत्याधुनिक कमांड एंड कंट्रोल सेंटर और हाईटेक अंडरग्राउंड फैसिलिटी बना रखी थी। ब्रह्मोस हमले में इस गुप्त फैसिलिटी के कथित रूप से नष्ट होने से ट्रंप बौखलाए हुए हैं। रक्षा विशेषज्ञों के इस दावे में कितनी सच्चाई है, यह पड़ताल का विषय हो सकता है। लेकिन इतना तो तय है कि नूरखान में अमेरिका की कोई न कोई दुखती रग तो जरूर थी।

ऐसा माना जाता है कि चिनाब नदी के उत्तर में पाकिस्तान के जितने भी एयरबेस और मिलिट्री बेस हैं उन्हें चीन के हितों के हिसाब से संचालित किया जाता है और दक्षिण में जकोबाबाद और क्वेटा तक जितने बेस हैं उन्हें अमेरिकी हितों के मद्देनजर संचालित किया जाता है।

बताते हैं, कि अब अमेरिका को चीन बुरी तरह से खटकने लगा है और वह चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत के पूर्वोत्तर या लद्दाख में अपना सैन्य अड्डा बनाना चाहता है। लेकिन मोदी सरकार अमेरिका की इस मांग को ज़रा भी तवज्जो नहीं दे रही। बांग्लादेश में शेख हसीना भी इसलिए हटाई गई क्योंकि उन्होंने सेंट मार्टिन आईलैंड पर अमेरिकी सैन्य अड्डा बनाने की योजना को नकार दिया था।

अमेरिका अपने कृषि एवं डेयरी उत्पादों को भारत के बाजार में उतारना चाहता है। भारत की अब तक की सब सरकारें इसके विरोध में रही हैं और। मोदी भी इसके पक्ष में नहीं हैं।

भेद खुला तो ठंडे बस्ते में डाला
बहरहाल, पहले चरण के इस अभियान की कहानी अभी पूरी नहीं हुई।  चार और पांच सितंबर की दरम्यानी रात डीप स्टेट, CIA, ट्रंप प्रशासन और पेंटागन के अधिकारियों की बैठक में इस सीक्रेट मिशन की पोल खुलने पर CP यानी Change of Person in Power को फिलहाल विराम दे दिया गया है। लेकिन इस योजना के सुदीर्घ हिस्से यानी रिजीम चेंज प्रोग्राम को चलाते रहने का निर्णय किया गया।

डीप स्टेट ने कहां कहां किया तख्तापलट
अगर हाल में डीप स्टेट के सफलतम तख्तापलट अर्थात रिजीम चेंज के उदाहरणों की चर्चा करें तो ट्यूनीशिया की क्रांति से शुरू हुए अरब स्प्रिंग, इराक, लीबिया, सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार तक जितने सत्ता को उखाड़ फेंकने के अभियान छेड़े गए उन सबके पीछे अमेरिका और डीप स्टेट का सीधा और स्पष्ट हाथ रहा है।

नेपाल में शुरू हुए ताजा उपद्रव में भी अमेरिकी छाप स्पष्ट नजर आ रही है। भारत में CAA और कृषि कानूनों के खिलाफ जो अंध-विरोध, झूठ और नफरती एजेंडा चलाया गया उसके पीछे भी डीप स्टेट की यही मंशा थी कि भारत में मोदी जैसा निर्णायक और साहसी नेतृत्व सत्ता में न रहने पाए।

क्या है जॉर्ज सोरोस की भूमिका ?
अपने वामपंथी एजेंडे के तहत दुनियाभर की सरकारों को अस्थिर करने वाले अरबपति व्यवसायी जॉर्ज सोरोस का बेटा अलेक्जेंडर सोरोस बांग्लादेश में रातोंरात तख्तापलट के महीनों पहले से वहां डेरा जमाए हुए है। इतना ही नहीं अमेरिकी प्रशासन में तख्तापलट विशेषज्ञ माने जाने वाले डोनाल्ड लू और समंथा पॉवर भी बांग्लादेश के कई चक्कर लगा चुके हैं। डोनाल्ड लू भारत में भी आते रहे हैं और स्टालिन जैसे पृथकतावादी नेताओं से भेंट करते रहे हैं।

राहुल गांधी का क्या है कनेक्शन?
कहा तो यहां तक जाता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के 55 की उम्र का यह कथित चिर युवा नेता कथित रूप से 2023 में डोनाल्ड लू से कहीं ज्यादा खतरनाक रिजीम चेंज एक्सपर्ट समांथा पॉवर से उज़्बेकिस्तान में भेंट कर चुके हैं। नेपाल में चीन की राजनयिक हू यांग की से उनकी मुलाकात तो सर्वविदित ही है। यांग की को चीनी विदेश नीति अधिष्ठान में उनके धुर भारत विरोधी रुख के लिए जाना जाता है।

कांग्रेस का यह बेलगाम सर्वमान्य नेता अभी मलेशिया के बहुत छोटे और बदनाम शहर लेंगकाई में हैं। लेंगकाई दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों के एजेंट्स के मिलने जुलने और गुप्त समझौते आदि करने के लिए मुफीद और महफूज़ जगह मानी जाती है।

जातिगत जनगणना का डीप स्टेट कनेक्शन
आपको अच्छी तरह से याद होगा कांग्रेस नेता राहुल गांधी अभी कुछ समय पहले तक जातिगत जनगणना का झंडा बुलंद किए हुए थे। ऐसे में हमारे मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यह ख्याल राहुल को आया कहां से? Disinfo Lab नाम की संस्था ने थोड़ी पड़ताल की तो पता चला कि इस विचार के जनक हैं फ़्रांस के धुर वामपंथी विचारक क्रिस्टोफ़ी जेफरलो।

कौन हैं क्रिस्टोफी जेफरलो ?
खुद को भारत विशेषज्ञ बताने वाले क्रिस्टोफी वास्तव में घोर भारत और हिंदू विरोधी माने जाते हैं। पश्चिमी जगत के वामपंथी इकोसिस्टम में उनकी राय को भारत के मामलों में अंतिम और सर्वोच्च माना जाता है। सितम्बर 2021 में उन्होंने एक रिसर्च पेपर में जातिगत जनगणना की मांग उठाई और इधर भारत में उनके बौद्धिक अनुयायियों ने हाथोंहाथ इस योजना को लपक लिया।

क्रिस्टोफी और उनके कई शिष्य जैसे गाइल्स वर्नियर, अंगना चटर्जी, सुनीता विश्वनाथ आदि को जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन, टाइम मैगजीन के संस्थापक हेनरी लुइस के नाम पर बने हेनरी लुइस फाउंडेशन, अमरीकी विदेश नीति के वास्तविक नियंता एशिया फाउंडेशन, रॉकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, मेलिंडा एंड बिल गेट्स फाउंडेशन और कार्नेगी एंडोमेंट आदि के माध्यम से विभिन्न रिसर्च प्रोजेक्ट के नाम पर करोड़ों डॉलर की सहायता मुहैया कराई जाती है। मणिशंकर अय्यर की बेटी यामिनी द्वारा संचालित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च भी इन्हीं फाउंडेशन की सहायता से चल रहा था।ये भारत में इस्लामी कट्टरपंथ, नक्सली हिंसा और सेवा की आड़ में भारत का सांस्कृतिक चरित्र बदल रही मिशनरियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कवर फायर देते हैं।

क्या है फोर्ड फाउंडेशन?
सम सामयिक विषयों में दिलचस्पी रखने वाले पाठकों को खूब याद होगा कि आंदोलन की कोख से जब अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी का जन्म हों रहा था तो कई जानकार लोगों ने उनपर सीआईए के फ्रंट के रूप के कम करने वाले फोर्ड फाउंडेशन के धन से भारत में अराजकता फैलाने का आरोप लगाया था। जिसे बाद में बड़बोले केजरीवाल ने खुद स्वीकार करते हुए एक बार कह दिया कि हां वो अराजक हैं।

यहां तक कि, हिंदू घृणा और भारत विरोध में गले तक तर रहने वाली लेखिका अरुंधति रॉय ने भी 2011 में अपने एक आलेख में आरोप लगाया कि विश्व बैंक द्वारा लोकतंत्र और समानता के लिए जिन 66 कार्यक्रमों का वित्तपोषण करती है उनमें से दो कार्यक्रमों के तहत केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के NGO भी धन पाते रहे हैं। फोर्ड फाउंडेशन और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार का सम्बन्ध तो जगजाहिर ही है। इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि यह पुरस्कार भारत में रहने वाले भारत विरोधियों को ही क्यों दिया जाता है।

खतरनाक मंसूबों से अभी मुक्ति नहीं !
भारत के सुधि नागरिकों को गांठ बांध लेना चाहिए कि अभी इस अभियान को सुस्ताने के लिए रोका गया है। इसपर पूर्ण विराम नहीं लगा है। मोदी को सत्ता से हटाने के लिए डीप स्टेट के प्रयास अनथक जारी रहेंगे। मतदाता सूची में गड़बड़ी के नाम पर पूरे देश में बेसिरपैर के प्रोपेगंडा के पीछे भी डीप स्टेट की यही मंशा काम कर रही है कि भारत की ग्रोथ को रोकने के लिए मोदी को हटाना अनिवार्य है। इस अभियान का अगला चरण जातीय, भाषाई और सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ाकर व्यापक हिंसा भड़काने का हो सकता है।

ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने ब्राह्मणों के खिलाफ जो विष भरा सरासर झूठ बोला है, वो इसी प्रोजेक्ट को एक सोची समझी कड़ी है। कश्मीर में अशोक स्तंभ के नाम पर इसकी शुरुआत हो चुकी है। इसके बाद क्रमशः बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, और पूर्वोत्तर से इसी तरह की नफरत और देशद्रोह से भरी घटनाओं की श्रृंखला चालू हो सकती है।

याद कीजिए कि अमेरिकी टैरिफ विवाद के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों को संबोधित करते हुए क्यों कहा था कि उन्हें किसानों के हितों की रक्षा के लिए बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। शायद यही वो कीमत है जिसकी चर्चा पीएम कर रहे थे।

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