इसे ही तो कहते है निकम्मी सामाजिक व्यवस्था ?
बिलासपुर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार को मात्र राशन के लिए सोशल मीडिया मंचों पर गुहार लगानी पड़ रही है ?
खुद को दानी बताने वाले समाज के बेशर्म सामाजिक पदाधिकारियों को जरा भी शर्म नहीं है क्या ?
भंडारा करने वाले, करोड़ो रु खर्च कर कलियुगी बाबाओं से कथाएं कराने वाले, कलियुगी बाबाओं को 56 भोग खिलाने वालों सहित आखिरकार निकम्मे सामाजिक पदाधिकारी कर क्या रहे है ?
ब्राह्मण समाज के पदाधिकारियों सुनो,
आपके समाज में एक व्यक्ति को सोशल मीडिया मंचों पर मात्र कुछ माह के राशन के लिए गुहार लगानी पड़ रही है, ब्राम्हण समाज में भी एक से पदीय ताकतवर, धनाढ्य वर्ग के लोग भी है ? क्यों समाज के इस वास्तविक जरूरत मंद को इस तरह सार्वजनिक मंचों पर गुहार लगानी पड़ रही है ? क्या सामाजिक व्यवस्था ध्वस्त है और समाज के सफेदपोश पदाधिकारी समाज की आड में निजी हित मात्र साध रहे है या समाज की सुध लेने की भी फुर्सत होगी ? अत्यधिक विचारणीय !
हिन्दू समाज कोई भी हो ? ऐसे जरूरतमंद लोग पहले सामाजिक स्तर पर मदद की गुहार लगाते है जब कोई नहीं सुनता है तो ईसाइयों को सूचना मिलते ही मदद के लिए पहुंच जाते है और हमारे हिंदुओं के लाखों परिवार इसी तरह धर्मांतरित हो जा रहे है क्योंकि लगभग अधिकांश हिंदुओं के सामाजिक पदाधिकारी निकम्मे जो है जो समाज के लोगों की सुध लेने की जरूरत ही महसूस नहीं करते समाज की आड में सफेदपोश बनकर राजनीतिक करते हुए अपने आर्थिक हित साधते है !

