शासकीय अधिकारी होना,अक्लमंद होने की गारंटी नहीं !
मामला छत्तीसगढ़ के स्कूलों में स्पोर्ट किट सप्लाई करने हेतु टेंडर में रखी विशेष शर्त से जुड़ा है कि, सप्लायर को पूर्व में छत्तीसगढ़ सरकार के शिक्षा विभाग में स्पोर्ट किट सप्लाई की गई फर्म ही उक्त टेंडर से भाग ले सकती है,जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अनकांसिट्यूटेनल माना है !
संविधान के आर्टिकल्स 19 का उल्लंघन माना है, सवाल यह है कि सरकार बड़े बड़े पदों पर कथित शासकीय सेवकों को भारी भरकम वेतन,भत्ते क्या इसलिए देती है कि अधिकारी कम अक्ल के काम करते रहे,मनमाने तरीके से जो चाहे खुद के घोषित नियम बनाए, संबंधित फर्म छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गई तो क्या डिफेंडेड के रूप में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा नियुक्त वकील की लाखों रु फीस खर्च नहीं हुई होगी, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन कम अक्ल वाले अधिकारियों को कोई फर्क भी पड़ता नहीं,क्योंकि,भारतीय न्यायालयों के फैसले जवाबदेही विहीन होते है ! शासकीय सेवकों द्वारा बनाए गए संविधान के विरुद्ध खुद के नियमों से शासन का ओर सामने वाली पार्टी का चाहे लाखों खर्च हो जाए इन कम अक्ल वालो को कोई फर्क पड़ता नहीं है क्योंकि व्यक्तिगत जिम्मेदारी,जवाबदेही अदालतें तय करती नहीं है, क्या टेंडर प्रक्रिया में अधिकारियों के मनमाने,संविधान विरुद्ध,गैरकानूनी नियम यू ही बनते रहेंगे ?सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला बहुत कुछ कहता है जो स्वयं वर्णनीय है!
