क्या मिलार्ड्स,संसद द्वारा पारित कानूनों पर,पक्षों द्वार SC में शक्ति परीक्षण की जहरीली परम्परा का अंत करेगे ?
बिलासपुर : हम बात कर रहे है वफ्फ एक्ट संशोधन बिल पर सुप्रीम कोर्ट में दायर विभिन्न पक्षों द्वारा दायर याचिकाओं के बारे में, जिसमें वफ्फ एक्ट संशोधन बिल पास होने से एक बड़ा हित धारक आदिवासी समाज भी है !
वैसे भी आदिवासी /वनवासी संरक्षण एक्ट से आदिवादियों की भूमि पहले से संरक्षित है, जिसे वफ्फ तो क्या, किसी रूप में छीना नहीं जा सकता है, लेकिन ये सिर्फ कागचों में सिमटकर रह गया था,लेकिन अब वफ्फ एक्ट संशोधन बिल से आदिवासियों को फिर से एक आशा की किरण दिखाई दी है, जो आदिवासियों की जमीनों को वफ्फ के माध्यम से छीनना चाहते है उन्हें यह वफ्फ एक्ट संशोधन बिल नागवार गुजर रहा है, उधर दोनों पक्ष के लोगो द्वारा सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर की गई है !
क्या, संसद द्वारा पारित कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट में अलग से शक्ति परीक्षण की इस जहरीली परम्परा पर देश के मिलॉर्ड लगाम लगाएंगे ? जो कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से कानून अस्तित्व में आ चुका है ?
विशेषकर ऐसे मामलों में जिस कानून से किसी के मौलिक अधिकार संबंधी संविधान के उल्लेखित किसी अधिकार का हनन भी नहीं होता !
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन मामले की सुनवाई से पहले नए कानून के समर्थन में लगातार आवेदन दाखिल हो रहे हैं. अब आदिवासी संगठनों ने भी इस कानून को आदिवासियों के हित की रक्षा करने वाला बताकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष सुने जाने की मांग की है. जय ओमकार भीलाला समाज संगठन और आदिवासी सेवा मंडल नाम की संस्थाओं ने यह नए आवेदन दाखिल किए हैं.
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नए वक्फ संशोधन कानून की धारा 3E अनुसूचित जनजाति के लोगों की जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित करने पर रोक लगाती है. आदिवासी संगठन इसे अपने समुदाय के हितों की रक्षा के लिए एक जरूरी प्रावधान मान रहे हैं. उनका कहना है कि संविधान निर्माताओं ने आदिवासियों की जमीनों को लेकर विशेष रूप से चिंतित रहे. इसका परिणाम है तमाम राज्यों के ऐसे कानून जो अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की जमीनों का ट्रांसफर गैर-आदिवासी को करने पर प्रतिबंध लगाते हैं.
लंबे समय से जरूरत की जा रही थी महसूस
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आदिवासी संगठनों ने कहा है कि वक्फ कानून, 1995 में वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित शक्ति दे दी गई थी. ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां वक्फ बोर्ड ने आदिवासियों की जमीन को वक्फ बताकर उस पर कब्जा कर लिया. संसद से बना नया वक्फ संशोधन कानून आदिवासी समाज के हितों के प्रति केंद्र सरकार की वचनबद्धता को दिखाता है. लंबे समय से ऐसे कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी.
नए वक्फ कानून के विरोध में 20 से ज्यादा याचिकाए दर्ज
उल्लेखनीय कि नए वक्फ कानून के विरोध में कांग्रेस, आरजेडी, एसपी, टीएमसी, डीएमके, AIMIM जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी समेत कई संगठनों और लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं. उन्होंने नए कानून को मुस्लिमों से भेदभाव करने वाला बताया है. इस तरह की 20 से ज़्यादा याचिकाएं दाखिल हुई हैं.
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच याचिकाओं पर करेगी सुनवाई
16 अप्रैल को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच मामले को सुनेगी. उससे पहले नए कानून के समर्थन में भी याचिकाओं का दाखिल होना जारी है. 2 आदिवासी संगठनों के अलावा 7 राज्य सरकारों ने नए कानून को संविधान सम्मत और न्यायपूर्ण बताया है. इसके अलावा भी कई व्यक्तियों और संगठनों ने नए कानून को सही बताते हुए आवेदन दाखिल किए हैं. इस तरह कानून के पक्ष में भी 14-15 आवेदन दाखिल हो चुके हैं. केंद्र सरकार ने भी कैविएट दायर कर अपना पक्ष रखने की मांग की है
वक्फ संशोधन एक्ट के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंची 7 राज्य सरकारें, नए कानून को पारदर्शी और न्यायोचित बताया है !
