एक संदेश,एक आवाज,हिंदुओ में सम्भव नहीं ?

पहलगांव ( कश्मीर ) 27 टूरिस्ट हिंदुओ की धर्म पूछ पूछकर, सभी मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा की गई निर्मम हत्या पर, कश्मीरी मुसलमानों सहित देश भर के मुस्लिमो द्वारा आतंकवादियों की बनावटी निन्दा का दौर जो शुरू हुआ है, देशभर का मीडिया भाईचारे के इस संदेश को बढ़ चढ़कर प्रसारित,प्रचारित कर रहा है ! स्थानीय पोर्टल्स, जिनमें सेक्युलर हिंदुओ की भारी तादाद है उनमें भी किसी ने यह सवाल करना उचित नहीं समझा कि मुर्शिदाबाद, पालघर, बंगलादेश में हिंदुओ की हत्या पर देश के मुसलमानों ने कुछ इसी तरह का भाईचारा वाला संदेश क्यों नहीं दिया ? किसी ने भी इस तरह निन्दा क्यों नहीं की ?
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मुस्लिमो में जबरदस्त संगठित नेतृत्व है, उनको एक गाइड लाइंस जारी होती है और बताया जाता है कि क्या बोलना है क्या करना है ?
हिंदुओ के पास ऐसा कोई नेतृत्व नहीं है, हर शहर, हर जिले,हर नगर, हर मोहल्ले में हिंदुओ के, हिन्दू संगठनों के हिन्दू /सेक्यूलर मीडिया के विचार अलग अलग होते है !
हिंदुओ में सशक्त नेतृत्व के अभाव में यह संभव ही नहीं कि, “एक संदेश,एक आवाज” हो ?
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बिलासपुर सहित देशभर में
जो भी सनातनी पत्रकारिता से जुड़े है उन्हें ट्रेनिंग की ज़रूरत है ?
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बिना सवाल की, कैसी पत्रकारिता ?जिसके सवाल न हो ?
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देशभर से धड़ाधड़ फोटो और प्रेस विज्ञप्तियां मिडिया में जारी हो रही है, उनकी, जो आतंकवाद के जनक है आज वो ही पहलगांव की घटना पर आतंकवादी घटना का विरोध कर रहे है !
किसी भी सनातनी पत्रकार ने ऐसे लोगो से नहीं किया सवाल ? कि बंगलादेश में, भारत के बंगाल में मुर्शिदाबाद में हिंदुओ की निर्मम हत्या पर चुप क्यों थी ये कथित आतंकवाद विरोधी गैंग ?
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सिर्फ कश्मीर में हुई घटना पर क्यों छलका इनका दर्द ?
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वास्तव में ये अल तकिया फार्मूला है,
इसी को सनातनी पत्रकारों को न केवल समझना है बल्कि अपनी पत्रकारिता के तौर तरीके बदलने की भी जरूरत है !
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क्या डरता है हिन्दू पत्रकार, सच लिखने में ?
क्यों है दर्द अल तकिया वाला भाईचारा निभाने वालों को पहलगांव की घटना पर ? क्यों कम अक्ल वाले है सनातनी पत्रकार ?
लिखते क्यों नहीं ? कि, मुसलमानों द्वारा इस घटना का विरोध, कश्मीरियों की आजीविका रोजगार बचाने की कवायद मात्र है,
ये हिन्दू ही है तो जो प्रतिवर्ष लगभग दो लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च करके आते है वहां, जिससे उनका रोजगार चलता है, इसी पैसे से कोई भी कश्मीरी शायद ही गरीब होगा ?
यदि गरीब होते तो बिहार,छत्तीसगढ़ की तरह दूसरे प्रदेशों में मजदूरी करने जाते की नहीं ?
ये अल तकिया की कवायद है, ये कश्मीरियों का रोजगार/आजीविका बचाने का फार्मूला है !
ये बनावटी विरोध की आवाजे ही “अल तकिया” है !