दवाओं के MRP ने शिवाकाशी के पटाखों की बदनामी ढक दी ?

दवाओं के MRP ने शिवाकाशी के पटाखों की बदनामी ढक दी ?

चार,पांच दशक पहले पटाखों की खरीदी पर अमूनन सभी को मालूम हुआ करता था कि, दिवाली पर बच्चों को फुलझड़ी दिलवानी है तो 2 रु की आएगी, भले ही उस पर उस समय भी MRP 15/20/25 रु या कुछ भी क्यों न लिखा हो ?

समय बदला, व्यवसायियों को मार्जिन का लालच  अधिक हुआ,लोग कैसे जल्दी धनी बने, एक स्पर्धा सी शुरू हुई, तो मिलावट का बोलबाला शुरू हुआ, बाजार में नकली चीजों सहित नकली मिलावटी खाद्य पदार्थों की बाढ़ सी आने लगी ! एक वर्ग समुदाय विशेष का व्यवसाय ही एक समय था नकली मिलावटी सामग्री बेचने वालों की सूची  में विशेष पहचान बन गई ? जो सस्ता बेचते थे लेकिन, मिलावटी,अशुद्ध बेचते थे, इनकी पैसा कमाने की लालसा,भूख इतनी तीव्र थी कि, आटे की गोली बनाकर इसमें रंग मिलाकर पुड़िया बनाई और चूहे मार चूहे मार गोली बेचकर चले जाते थे, भले ही इनकी इस गोली की पुड़िया को खरीदने वालों  के घरों में इन आटे की गोलियों से चूहे दुगने क्यों न हो जाए, लेकिन ये तो बेचकर निकल लिए, आज इस बाजार कल उस बाजार ! इनकी देखा देखी, पूर्व में स्थापित परंपरागत शुद्ध बेचने वालों को भी व्यवसायिक मजबूरियों के तहत मिलावटी, अशुद्ध सामग्री बेचने को मजबूर होना पड़ा !

अब बात करते है वर्तमान कलियुगी व्यापार व्यवस्था की, तो धोखाधड़ी के मामले में इस समय स्वास्थ्य सेवाएं अव्वल नंबर पर है ! जिसके दवाइयां भी शामिल है ,?

ये संगठित ठगो का गिरोह है जिस से सरकार भी निपटने में खुद को असक्षम मानती है !

दवाओं पर डिस्काउंट अर्थात छूट का तहलका मचा है बाजार में, स्थिति यह है कि 500 रु MRP की दवा को कितने में बेचेगा यह दवा विक्रेता पर निर्भर है कि वो कितना डिस्काउंट देगा ?दवा दुकानदार चाहे तो अक्सर 60% डिसकाउंट के ऑफर भी उपलब्ध है अन्यथा किसी डॉक्टर या हॉस्पिटल परिसर में स्थित दुकान से लेंगे तो 500 पूरे देने पड़ेंगे ! ये तो बात हुई खुले बाजार में बिकने वाली दवाओं पर MRP की बात ,!

गड्ढा और भी बड़ा है गहरा भी है, यदि किसी हॉस्पिटल में भर्ती है मरीज तो आपको हॉस्पिटल में मौजूद दवाओं की MRP यदि एक हजार गुणा भी मिले ओर उस MRP पर कोई छूट भी न मिले तो हैरान मत होना,क्योंकि दवा निर्माताओं की भी मिलीभगत इस कदर है कि आप क्वांटिटी में ऑर्डर दीजिए MRP डॉक्टर या हॉस्पिटल की मर्जी के मुताबिक प्रिंट होगी !बस दवा का नाम में थोड़ा फर्क होगा ताकि इस नाम की दवा किसी ओर दुकान पर या उस शहर में मिलेगी ही नहीं ,! भले ही कंपोजिशन सेम क्यों न हो ?

ऐसा बिल्कुल नहीं हैं कि किसी सरकार को इस संबंध में पता नहीं है ? मालूम सभी सरकारों को है इस गोरख धंधे का, लेकिन राजनीतिक चंदे की वजह से या चुनावी फंड भी इन्हीं दवा माफियाओं से मिलना है तो कार्यवाही करे कौन ?

न्यायपालिका को रोहिंग्याओ की बंगलादेशियो के घुसपैठियों के मानव अधिकारों की चिंता के मामलों की चिंता पहले है, योगी बाबा के बुलडोजर कार्यवाही पर रोक लगाने की सुनवाई पहले करनी है तो इस प्रकार के व्यापक जनहित के मामलों पर स्वत: संज्ञान ले कौन ?

राम भरोसे है जनता ! भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न माफियाओं के चंगुल में फंसकर किसी तरह जीवन व्यतीत कर रही है जनता ! शायद ये ही स्थितियां बनेगी जनक्रांति !

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