क्या यहां छिपे बैठे,गृहयुद्ध करवाने के इच्छाधारी साजिश कर्ता?

क्या यहां छिपे बैठे,गृहयुद्ध करवाने के इच्छाधारी साजिश कर्ता?

हमें याद आता है जब केन्द्र सरकार ने सुब्रमण्यम स्वामी से कहा था कि आप JNU के चांसलर बन जाओ तो स्वामी ने कहा था कि मुझे सेना की एक टुकड़ी JNU में तैनात करोगे तभी इस पद पर नियुक्ति को स्वीकार करूंगा !

क्या अब वैसी ही कुछ स्थिति प्रकट हो रही हैं IIT मुंबई की ? विदेशी फंडिंग के सबूत मिलने के बाद ओर मोदी,अमित शाह के विरुद्ध उगले भाषणों, पोस्टरों से तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि, देश में गृहयुद्ध की साजिशन तैयारियां इन्हीं जैसे संस्थानों से चल रही हैं ?

आईआईटी बॉम्बे विवाद: पोस्टर से उठे सवाल, विदेशी फंडिंग और नियुक्तियों की पड़ताल
मोदी, शाह और योगी की तस्वीरों पर लिखे आपत्तिजनक शब्द, विदेशी फाउंडेशन से मिले करोड़ों डॉलर पर खड़ा हुआ नया विवाद।
The Narrative World

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे, जो देश की तकनीकी शिक्षा का गौरव माना जाता है, एक बड़े विवाद के केंद्र में है। विवाद की शुरुआत उस पोस्टर से हुई, जो 12-13 सितंबर को कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले में होने वाली एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के प्रचार के लिए जारी किया गया था। इस कार्यशाला का सह-आयोजन आईआईटी बॉम्बे और मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के साथ होना था।

पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों के साथ “WE FOOL YOU” जैसे वाक्य लिखे गए थे। पोस्टर सामने आते ही सोशल मीडिया पर तूफान मच गया। आरोप लगे कि देश के शीर्ष संस्थान के नाम पर देश विरोधी और हिंदू विरोधी एजेंडा चलाया जा रहा है।

बढ़ते विवाद को देखते हुए आईआईटी बॉम्बे ने बयान जारी कर कहा कि उसे इस पोस्टर की जानकारी पहले से नहीं थी। संस्थान ने इसे तत्काल हटाने और भविष्य में यूसी बर्कले व मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी के साथ सहयोग समाप्त करने की घोषणा की। प्रशासन ने यह भी कहा कि पोस्टर से उसकी कोई सहमति नहीं थी। लेकिन विरोध करने वालों का कहना है कि सफाई देने और कार्रवाई करने में संस्थान ने देर कर दी।

यह विवाद आईआईटी बॉम्बे की एक विशेष इकाई “नई राजनीतिक अर्थव्यवस्था पहल” (एनपीईआई) से जुड़ता दिख रहा है। यह पहल संस्थान के लिबरल एजुकेशन सेंटर के अंतर्गत चल रही है और इसका नेतृत्व ब्रिटिश नागरिक अनुश कपाड़िया कर रहे हैं। एनपीईआई को 2022 में फोर्ड फाउंडेशन से चार मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली थी। यही फोर्ड फाउंडेशन 2015 में भारत सरकार की निगरानी सूची में था।
Representative Image
आलोचकों का कहना है कि यह फंडिंग केवल शैक्षिक कार्यों के लिए नहीं, बल्कि भारत की नीतियों और हिंदू नेताओं को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल हो रही है। हाल ही में एनपीईआई से जुड़ी एक किताब में हाथरस आंदोलन और जातिगत मुद्दों को लेकर भारत के लोकतंत्र पर तीखी टिप्पणियाँ की गईं, जिसे कई लोग राजनीतिक प्रचार मानते हैं।

अनुश कपाड़िया की नियुक्ति भी अब चर्चा का विषय है। सूत्रों का कहना है कि उनका पहला साक्षात्कार सफल नहीं रहा था, लेकिन मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के तत्कालीन प्रमुख डी. पार्थसारथी ने उन्हें दोबारा मौका दिलाया और नौकरी पक्की करवाई। आलोचकों का आरोप है कि यह प्रक्रिया नियमों के खिलाफ थी और कपाड़िया को विशेष छूट दी गई।

दिलचस्प बात यह है कि अब यही पार्थसारथी पुणे के नयांता विश्वविद्यालय से जुड़े हैं। यह विश्वविद्यालय अगस्त 2025 से शुरू होने वाला है और इसे फोर्ब्स का सहयोग प्राप्त है। इससे यह संदेह गहराता है कि कहीं यह सब एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा तो नहीं, जिसका उद्देश्य भारतीय शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक दखल बढ़ाना है।

कार्यशाला के पोस्टर में केवल हिंदू नेताओं और एक संन्यासी की छवि को नकारात्मक रूप में दिखाया गया, जबकि अन्य धार्मिक या राजनीतिक प्रतीक पूरी तरह अनुपस्थित थे। इससे हिंदू समुदाय और छात्रों में नाराज़गी और बढ़ गई है। सोशल मीडिया पर कई लोग लिख रहे हैं कि अगर यह अकादमिक बहस होती तो इसमें सभी धर्मों और राजनीतिक विचारधाराओं की आलोचना होती, लेकिन यहाँ सिर्फ हिंदू प्रतीकों को निशाना बनाया गया।
आईटी उद्योगपति मोहनदास पाई ने लिखा, “यह घटना बताती है कि हमारे प्रमुख संस्थान अब वैचारिक षड्यंत्र का शिकार हो रहे हैं। आईआईटी बॉम्बे जैसे संस्थान को तुरंत सफाई और सुधार की ज़रूरत है।” वहीं लेखक राजीव मल्होत्रा ने ट्वीट किया, “IIT Woke at war against India.”

आईआईटी के कुछ छात्रों ने भी ऑफ रिकॉर्ड कहा कि उन्हें एनपीईआई की गतिविधियों पर पहले से संदेह था। “हम टेक्नोलॉजी पढ़ने आए हैं, लेकिन यहाँ राजनीति और विचारधारा का एजेंडा ज़्यादा दिखता है,” एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।

फिलहाल यह विवाद सिर्फ एक पोस्टर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने भारत की शिक्षा व्यवस्था में वैचारिक हस्तक्षेप, विदेशी संस्थाओं की भूमिका और सांस्कृतिक पहचान पर गहरी बहस छेड़ दी है। आने वाले दिनों में सरकार और संस्थान की कार्रवाई तय करेगी कि यह आग बुझती है या और भड़कती है।

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