आदिवासी देव “धरती आबा” जन्मोत्सव पर विशेष !
आदिवासी समाज के महापुरुष बिरसा मुंडा जिन्हें आदिवासी समाज धरती के देवता के रूप में पूज्यनीय है ! जिस ईसाइयत की काली छाया से आज आदिवासी समाज की संस्कृति,सभ्यता,सम्मान,सामाजिक परंपराओं की अमूल्य धरोहर रूपी विरासत को धर्मांतरण के माध्यम से नष्ट किए जाने के प्रयास किए जा रहे है, आदिवासियों के इन्हीं आदर्श मूल्यों को बचाने के लिए आदिवासियों के संरक्षण हेतु आदिवासी समाज के लिए ” बिरसेत धर्म” की स्थापना की,जिसे बिरसा मुंडा के समस्त अनुयायी आज भी अपने ऐतिहासिक महापुरुष को अपना आराध्य मानते है ! आदिवासी समाज को अपनी धर्म,संस्कृति,परपंरा की अमूल्य धरोहर रूपी विरासत को बचाने के लिए बिरसा मुंडा की तरह ईसाइयत लालच प्रलोभन से दूर रहकर, सदैव अपनी संस्कृति को बचाए रखा जाना चाहिए ! हालांकि, बिरसा मुंडा की जयंती को भारत में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है ! इस सम्मान का श्रेय भी आदिवासी समाज को समर्पित है ! बिरसा मुंडा द्वारा समय रहते ईसाइयत से दूर होने के कारण आज भी बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज सहित सनातनी के रूप में समस्त सनातनी हर्षौल्लास के साथ बिरसा मुंडा जन्मोत्सव में हिस्सा लेते है !ओर आदिवासी समाज का सनातन में सम्मानित, महत्वपूर्ण स्थान आरक्षित है !
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जन्म: 15 नवंबर 1875 को उलीहातू गांव में, उनका जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था, इसीलिए उनका नाम ‘बिरसा’ पड़ा।
माता-पिता: पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम कर्मी मुंडा था।
शिक्षा: उन्होंने शुरू में मिशनरी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया गया। हालाँकि, बाद में जब वे आदिवासी संस्कृति के शोषण को महसूस करने लगे तो उन्होंने स्कूल छोड़ दिया।
उलगुलान आंदोलन और नेतृत्व
आंदोलन: ब्रिटिश नीतियों और जमींदारों के शोषण के खिलाफ उन्होंने ‘उलगुलान’ नामक एक आंदोलन शुरू किया, जिसका उद्देश्य आदिवासियों को उनके भूमि और पारंपरिक अधिकारों के लिए संगठित करना था।
‘बिरसैत’ धर्म की स्थापना: उन्होंने ईसाई धर्म त्यागने के बाद, लोगों को एकजुट करने के लिए एक नया धर्म ‘बिरसैत’ शुरू किया।
शहादत: 1899 में उनके आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई।
विरासत
‘धरती आबा’: आज भी आदिवासी समाज उन्हें ‘धरती आबा’ (पृथ्वी के पिता) के रूप में पूजते हैं।
जनजातीय गौरव दिवस: उनकी जयंती, 15 नवंबर, को भारत में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कानूनी प्रभाव: उनके आंदोलन के कारण ही 1908 में छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट पारित हुआ, जिसने आदिवासियों की भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित की।
