बिलासपुर, पुलिस महकमे में पिछले कई सालो से लगातार “कॉप ऑफ मंथ” कार्यक्रम चल रहा है, इसमें किसी को क्या आपत्ति ?और किसी को आपत्ति होनी भी नही चाहिए, क्योंकि यह विभाग का अपना विभागीय मसला है ! लेकिन, दो चीजे स्पष्ट है कि पुरस्कार देने वाले भी पुलिस विभाग के उच्च अधिकारी है और लेने वाले भी पुलिस विभाग के ही लोग है, जनता की पुलिस के बारे में क्या सोच है, यह कोई सरोकार रखती नही है ? दूसरा मसला यह है कि यदि किसी अपराधिक प्रकरण को सुलझाने में किसी पुलिस अधिकारी ने अपने सर्वोत्तम ज्ञान,अनुभव,ट्रेनिंग का उपयोग कर किसी गंभीर मामले को सुलझाया भी है तो यह उनकी ड्यूटी का हिस्सा है, कोई अहसान नही ! साथ ही किसी प्रकरण को सुलझाना तब माना जाए जब संबंधित प्रकरण में आरोपी /आरोपियों को न्यायालय से सजा हो जाए ? खुद ही मिया मिठ्ठू बनने का न तो व्यापक जनहित प्रदर्शित होता है और न सामाजिक उद्देश्य पूरा होता प्रतीत होता है ! थानों में ऐसे अनेक पुलिस प्रभारी है जिनको ठीक से या तो IPC का ज्ञान नही,या IPC की धाराओं को तोड़ मरोड़कर परिभाषित करने में महारत हासिल है, या पुख्ता अभियोजन या तो तैयार करना आता नही या करते नही ? मसलन, ऐसे अनेक मामले हैं, जिनमे ठगी के मामले को आपसी लेनदेन का मामला बना दिया जाता है और आपसी लेनदेन के मामलो को ठगी का ? यदि किसी प्रकरण के आरोपियों को पकड़ने में या किसी घटित अपराध को सुलझाने पर किसी प्रकार का सम्मान किसी पुलिस मेन को दिया जाता है तो फिर पुलिस की छवि को बदनाम करने वालो के विरुद्ध, लोगो की FIR दर्ज नही करने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध त्वरित और सख्त कार्यवाही क्यों नही ? हमारी जानकारी अनुसार थाना सिविल लाइंस में एक प्रकरण में सन 2017 से FIR दर्ज नही हो रही, जिसमे किसी A ने मृतक B (जो की सन 2003 में फांसी लगाकर मर चुका ) को सन 2017 में मुख्तयार नामा प्रदाता बताकर, B के नाम से सन 2017 में A ने खुद के नाम पर फर्जी,बनावटी,कूट रचित मुख्तयार नामा तैयार किया, और इसी फर्जी,कूट रचित मुख्तयार नामा के आधार पर, A ने C से विक्रय अनुबध कर स्पष्ट रूप से ठगी किया है, लेकिन थाना सिविल लाइंस का प्रार्थी को कहना हैं कि मृतक का मृत्यु प्रमाणपत्र लेकर आओ ?, जबकि शिकायत कर्ता मृतक के वारिसान को बतोर गवाह प्रस्तुत करने को तैयार है कि उनके पिता 2003 में स्वर्गवासी हो चुके है! चूंकि मृतक फांसी लगाकर मरा था इसलिए, मृतक के अत्यधिक गरीब परिजन पुलिस के पचड़े में नही पड़ना चाहते थे, दूसरी वजह अत्यधिक निर्धनता और अज्ञानता की वजह से किसी भी वारिसान,परिजन ने उनका मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाना उचित नही समझा, मृतक के परिजन आज भी इतने अधिक निर्धन है कि गांव में मात्र 80रू प्रतिदिन की रोजी पर खेतो में काम करने को मजबूर है ! लेकिन, पुलिस को सोचना चाहिए कि कूट रचित,फर्जी, बनावटी, मुख्तयार नामा के आधार पर ठगी का स्पष्ट मामला बनने के बाद भी FIR दर्ज न करना, पुलिस की मनमानी, पदीय दुरुपयोग है या नही ? इसलिए, हम यह स्पष्ट रूप से कहते है कि जब पुरुस्कृत किया जाता है तो गलतियों पर दंडित भी किया जाना चाहिए !