सावधान,डाक विभाग बना जनाबदेही विहीन ?
केंद्र सरकार ने बनाया नया कानून, अब भारतीय डाक विभाग बना जवाबदेही विहीन ? इससे पहले किसी का पार्सल इत्यादि में कीमती सामान को खोलकर, उसकी जगह सस्ता सामान भरकर पैक करने के अनेक मामले डाक विभाग सहित निजी कोरियर कम्पनियो में के बहुत से मामले आते रहे है,ऐसी घटनाओं पर किसी की डाक,पार्सल या पत्र इत्यादि खोलने पर संबंधित पोस्टल डिपार्टमेंट के अधिकारियों /कर्मचारियों को दो साल की सजा का प्रावधान था, जो कि नए कानून में उक्त प्रावधान को विलुप्त करने के साथ साथ जनता को उपभोक्ता अधिकारों से भी वंचित किया गया है, अब पोस्टल डिपार्टमेंट ऑफ इंडिया के खिलाफ किसी भी उपभोक्ता आयोग में परिवाद दायर नही किया जा सकेगा ? यानि सरकारी पोस्टल डिपार्टमेंट ऑफ इंडिया को उपभोक्ता आयोग से बाहर कर दिया गया है,मतलब, अब पोस्टमैन आपकी डाक को गलत पते पर डिलीवरी करे, आपका मनीऑर्डर समय पर सही व्यक्ति तक पहुंचे या न पहुंचे ?जनता जिम्मेदार ?भाजपा, एक तरफ वफ्फ बोर्ड में उल्लेखित एक तरफा कानूनों का विरोध करती है, वफ्फ एक्ट लोगो को न्याय मांगने से अदालतों के दरवाजे बंद करता है, दूसरी तरफ, भारतीय डाक विभाग के लिए जवाब देही विहीन कानून बनाकर सरकार जनता को न्याय से कानूनी अधिकारों से वंचित कर रही है ? आखिर सरकार की मंशा क्या है ?डाक विभाग के समानांतर निजी क्षेत्र की कोरियर कंपनिया भी आने वाले दिनों में इसी तरह के कानून से संरक्षण की मांग करेगी ?तो क्या होगा ? विकसित देशों में व्यवसाय,उद्योग, दुकानदारों को अधिक जवाब देह बनाया जाता है, और भारत में जवाब देहीं विहीन ? वैसे भी जनता के प्रति जब पूरा संविधान ही जवाब देही विहीन है तो जनता और उम्मीद भी क्या कर सकती है ? अब किसी को भी अपना पत्र,पार्सल, डाक, मनीऑर्डर इत्यादि भारतीय डाक विभाग से भेजना है तो अपनी खुद की रिस्क पर भेजे, सत्ता से सवाल में जब इस जवाब देही विहीन कानून की वजह पर चिंतन किया और सुरक्षित सहित सेवा की गारंटी पर विचार किया तो यही समझ आता है कि क्या केंद्र सरकार की मंशा इस जवाब देही विहीन कानून की आड़ में अब बीमा कंपनियों के लिए बड़े पैमाने पर डाक बीमा व्यवसाय के अवसर प्रदान करेगा ? जैसे रेलवे में यात्रा के लिए जनता से मात्र एक रुपया अतिरिक्त लिए जाने पर पैसेंजर को यात्रा बीमा सुविधा मिलती है, क्या इसी तरह प्रति डाक/पार्सल का बीमा कराकर भेजेंगे लोग कि उनके द्वारा भेजे जाने वाला डाक,पार्सल सामान या मनीऑर्डर सही व्यक्ति तक सही समय पर गंतव्य स्थान तक पहुंचने की गारंटी हो जाए ? दूसरी वजह : किसी का भी डाक,पत्र,पार्सल इत्यादि खोलकर देखने पर सजा का प्रावधान खत्म करने के पीछे सरकार की मंशा अच्छी भी हो सकती है कि बढ़ती आंतकवादी घटनाओं और फंडिंग को रोका जा सके ? ऐसे भी अनेक प्रकरण हुए है कि अपराधियों ने डाक विभाग द्वारा नशीले पदार्थो को, करेंसी को, दो नंबर की मूल्यवान वस्तुओ को, एक जगह से दूसरी जगह भेजा है ? उस पर लगाम लगे ?
