सिविल मामलो में फंसी/डूबी रकम वसूली का ठेका क्यों लेती है पुलिस ?
बिलासपुर : थाना एक ऐसी जगह है, जहा थानेदार के पास किसी भी निर्दोष को जेल भेजने के व्यापक उपायों के साथ असीमित अधिकार है ! ओर जब कोई पुलिस वाला वर्दी को वसूली का माध्यम बना ले ?तो यह विकराल स्थिति तमाम कानूनों की धज्जियां उड़ाती है ? सुप्रीम कोर्ट सहित तमाम अदालते, अंतिम निर्णय तक किसी को अपराधी तक नही मानती लेकिन थानो में बैठे जज रूपी थानेदार/जांच अधिकारी जब खुद की किसी बेकसूर को मुजरिम बनाने में लग जाए तो जनता करे क्या ? सिविल मामले में मंशा का अंतर समझने की ट्रेनिंग अधिकांश पुलिस वालो को या तो है नही, या जानबूझकर भी अनजान बनते है ?क्योंकि,मामला सिविल होते हुए भी सिविल मामले में फंसी रकम को निकालने का कानूनी /अदालती रास्ता न केवल जटिल है बल्कि अत्यधिक खर्चीला भी और अत्यधिक समय सीमा वाला भी है ?
सिविल मामले को क्रिमनल बनाना और क्रिमानल मामले को सिविल बनाना पुलिस को अच्छी तरह आता है ?और सिविल मामले की डूबी या फंसी रकम की वसूली में जब किसी पुलिस वाले को मिलना हो कुछ प्रतिशत तो फिर कहने की क्या ?
ताजा मामला थाना सिरगिट्टी का है ! मृतक क्रेता ने 8 साल पहले 16 लाख में मकान खरीदने का सौदा किया? अनुबंध कर दो लाख अडवांस दिया ! ओर क्रेता की मृत्यु हो गई !
उत्तराधिकारीयो का कहना है कि उनके पास मृतक द्वारा किए गए अनुबध की मूल प्रति नही है मात्र फोटो कॉपी है,मृतक द्वारा 8 साल पहले किए गए अनुबंध की मूल प्रति के बिना उतराधिकारियों के पास फोटो प्रति कहा से आ गई ?पहला सवाल ?क्यों उतराधिकारी उक्त अनुबंध की मूल प्रति प्रस्तुत करना नही चाहते है ?क्या मात्र किसी फोटो प्रति पर कोई अपराध बनेगा ?
दूसरा सवाल : मामला मकान खरीदी बिक्री का है ! जो कि न केवल पूर्णतया सिविल मामला है बल्कि न्यायिक दृष्टि से जिला उपभोक्ता विवाद प्रति तोषण आयोग के अंतर्गत आता है इसमें पुलिस क्या करेगी ? ये कोई आपराधिक घटना थोड़े ही है ?किसी प्रकार की ठगी से लिया गया अडवांस थोड़े ही है ?
तीसरा सवाल ; सिविल लेनदेन के अनुबंध का दस्तावेज की अधिकतम तीन साल तक कानूनी मान्यता है ? तो फिर उक्त अवैध दस्तावेज की मात्र फोटो प्रति के आधार पर मकान विक्रेता से जबरन वसूली का दबाव सिरगिट्टी पुलिस क्यों बना रही है ?
चौथा सवाल! मृतक की जिस विधवा महिला को पुलिस, उक्त अनुबंधित राशि दिलवाने का दबाव मकान विक्रेता पर डाल रही है ? उसमे यह कैसे तय होगा कि मृतक की यही एकमात्र महिला ही कानूनी उतराधिकारी है ? आजकल तो बहुत से लोगो के मरने के बाद कई कई पत्नियां प्रकट हो जाती है ? यदि यह भी मान लिया जाए कि सिरगिट्टी थाने में पदस्थ पुलिस वाले के दबाव में थाना स्तर पर किसी लिखित समझौते के तहत मकान विक्रेता यदि थाना में शिकायत करने वाली तथाकथित उतराधिकारी को पुलिस के दबाव में अनुबंधित राशि (अनुबंध की मूल प्रति के अभाव में) दो लाख दे भी देता है और कुछ दिन बाद फिर से कोई उतराधिकारी अनुबंध की मूल प्रति लेकर प्रकट होता है तो कथित पुलिस वाला भी इस ठगी में सह अपराधी बनेगा की नही ?और भागा भागा फिरेगा की नही ?
ऐसे मामलो में बिना किसी कानूनी उतराधिकारी प्रमाण पत्र के अभाव में, या बिना किसी मूल अनुबंध दस्तावेज के अभाव में सिरगित्ती थाना में पदस्थ पुलिस वाला कुछ कमीशन के चक्कर में क्यों रिस्क ले रहा है, यदि किसी मृतक का बैंक या किसी वित्तीय संस्थान में या जमीन जायदाद के संबंध में उतराधिकारी को पहले यह साबित करना जरुरी है कि एकमात्र वो ही उतराधिकारी है ? बिना जांच परख के जबरन मकान विक्रेता पर दबाव डालकर मृतक की तथाकथित उतराधिकारी को क्यों पुलिस वाला पैसे दिलवाना चाहता है ? जबकि मामला पूर्णतया सिविल भी है और अनुबंध की मूल प्रति के अभाव में तथा तथाकथित अनुबंध की वैधता एक्सपायर होने की वजह से विवादित भी है ?
पुलिस को ऐसे मामलो में आईपीसी 155 का उपयोग , जो अक्सर करती है किया जाना चाहिए ! पुलिस का काम आपराधिक घटनाओं में कार्यवाही का है न कि सिविल मामलो को आपराधिक रूप देकर वर्दी की आड़ में डूबी/फंसी रकम वसूली का ठेका लेना ?
